विचलित क्यों होते हो
आईना दिखाने पे ?
सच को मान भी जाओ
मेरे सच समझाने से
है खेल ही ऐसा ज़िन्दगी का
भूल हो ही जाती है सब से
लाख जतन कर डालो
बराबरी नहीं हो पाती रब से
जो गलती देख पाओगे अपनी
तभी तो सीखोगे कुछ नया
न मानोगे तो बताओ मुझे
मिलती है क्या बवंडर से पनाह?
की गलतियां मैंने भी बहुत
हाँ मानती हूँ एक ज़माने से
तुम भी विचलित मत हो जाओ
मेरे आईना दिखाने पे। ..
* * *
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